मुंशी प्रेमचंद की कविता 🤡⭐😊👩💻👍🙏 🌠✴️
विषय → ख्वाहिशें
ख्वाहिश नही मुझे,
मशहूर होने की
आप मुझे पहचानते है
बस इतना काफी है ।
अच्छे ने अच्छा
और बुरे ने बुरा जाना मुझे क्योंकि
जिसकी जितनी जरूरत थी,
उसने उतना पहचाना मुझे ।
जिंदगी का फलसफा भी
कितना अजीब है
शामें कटती नही और
साल गुजरते चले जा रहें हैं ।
एक अजीब सी दौड़ है
ये जिंदगी
जीत जाओ तो
कई अपने पीछे छूट जातें हैं
और हार जाओ तो
अपने ही पीछे छोड़ देते हैं ।
बैठ जाता हूँ
मिट्टी पे अक्सर,
क्योंकि मुझे अपनी औकात
अच्छी लगती है ।
मैंने समंदर से सीखा है
जीने का सलीका
चुप-चाप से बहना और
अपनी मौज में रहना ।
ऐसा नहीं कि मुझमें
कोई ऐब नही
पर सच कहता हूँ
मुझमें कोई फरेब नही ।
जल जाते हैं, मेरे अंदाज से
मेरे दुश्मन
क्योंकि, एक मुद्दत से मैंने
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले ।
एक घड़ी खरीद कर
हाथ में क्या बांध ली
वक्त पीछे ही
पड़ गया मेरे ।
सोंचा था घर बना कर
बैठूँगा सुकून से,
पर घर की ज़रूरतों ने
मुसाफिर बना डाला मुझे ।
सुकून की बात मत कर
ऐ ग़ालिब
बचपन वाला इतवार
अब नहीं आता ।
जीवन की भाग दौड़ में क्यों
वक्त के साथ रंगत खो जाती है
हँसती खेलती जिंदगी भी
आम हो जाती है ।
एक सवेरा था
जब हँस कर उठते थे हम
और, आज कई बार बिना
मुस्कुराये
शाम हो जाती है ।
कितने दूर निकल गए
रिश्तों को निभाते-निभाते,
खुद को खो दिया हमने
अपनो को पाते पाते ।
लोग कहते हैं
हम मुस्कुराते बहुत हैं,
और हम थक गए
दर्द को छुपाते-छुपाते ।
खुश हूँ,
और सबको खुश रखता हूँ
लापरवाह हूँ फिर भी
सब की परवाह करता हूँ ।
मालूम है
कोई मोल नहीं है मेरा
फिर भी
कुछ अनमोल लोगों से
रिश्ता रखता हूँ ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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