जैन धर्म के 10 अनोखे सिध्दांत
1 - कर्मवाद
जैन ऐसा धर्म है जो ईश्वर को अपनाने के लिए नहीं कहता अपितु कर्मवाद सिखाता है। जैन धर्म मानता है कि कर्म से बड़ा कुछ भी नहीं है और कर्म से ही ये दुनिया निरंतर चल रही है। यदि मनुष्य कर्मवाद को अपनाता है तो वो अच्छा कार्य करने के बारे में ज्यादा सोचेगा।
2 - क्षमा
जैन धर्म का मानना है कि जो क्षमा मांगता है वो वीर होता है लेकिन जो क्षमा करता है वो महावीर होता है। इसके अलावा संवत्सरी के दिन सभी जैन संपूर्ण जीवों से क्षमा मांगते हैं। जैन लोग ये कहकर क्षमा मांगते हैं कि शायद मेरे मन में कभी बुरे विचार आए हों अपशब्द निकल गए हों या फिर शारीरिक रूप से कुछ ग़लत कर दिया हो।
3 - अपरिग्रह अर्थात त्याग
बचपन से ही जैन धर्म को त्याग करना सिखाया जाता है। इस सिद्धांत से ये सीखा जा सकता है कि मेरे पास जितना है मैं उतने में ही खुद को सीमित रखूँगा और अगर मेरे पास ज्यादा है तो मैं उसे गरीबों में दान कर दूंगा। त्याग का अर्थ ये नहीं कि आप जीवन को ही त्याग दें, त्याग का अर्थ ये है कि आप अपनी इच्छाओं का त्याग करें और जो है उसी में संतुष्ट रहें।
4 - तपस्या
ये बड़ा ही अनोखा है - तपस्या। विज्ञान भी इस बात का प्रमाण है कि तपस्या से प्रतिरोधक (Immunity) का विकास होता है। तपस्या करने से शरीर में एक अलग तरह की ऊर्जा पैदा होती है।
5 - धार्मिक अनुष्ठान
धार्मिक कार्यक्रम की वजह से ही हम एक दूसरे से मिल पाते हैं जिससे समाजवाद बढ़ता है। यदि सब ऐसा करने लगे तो काफी बदलाव आ सकता है।
6 - धर्म गुरु (दीक्षा)
जैन धर्म को दो धर्मों के आधार पर बांटा गया है - गृहस्थ धर्म एवं दीक्षा धर्म। होता क्या है कि जैन धर्म में जब एक शिशु का जन्म होता है तो उसके पास ये दो विकल्प होता है गृहस्थ धर्म या दीक्षा धर्म। संसार में हो रहे पापों से दूर रहने के लिए 5 महाव्रत लेते हैं - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह तथा ब्रम्हचर्य। इस 5 महाव्रत को धारण करने से आत्मा पवित्रता की ओर प्रस्थान करती है जिन्हें हम महात्मा या साधु संत कहते हैं।
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